मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने M/s Study Metro Edu Consultant Pvt. Ltd. बनाम संयुक्त निदेशक एवं अन्य [रिट याचिका संख्या 30467/2023, आदेश दिनांक 5 अगस्त 2025] के मामले में यह स्पष्ट किया कि अन्वेषण प्राधिकरण (Investigating Authority) द्वारा दी गई टिप्पणियाँ/निष्कर्ष निर्णयन प्राधिकरण (Adjudicating Authority) पर बाध्यकारी नहीं हैं। विदेशी विश्वविद्यालयों को प्रदान की गई सेवाओं का वर्गीकरण और “स्थान आपूर्ति नियम” (Place of Supply Rules) के अनुसार निर्णय स्वतंत्र रूप से किया जाना चाहिए। इसी आधार पर, याचिकाकर्ता की रिट याचिका खारिज कर दी गई।
मामले के तथ्य:
- याचिकाकर्ता M/s Study Metro Edu Consultant Pvt. Ltd. इंदौर स्थित एक कंपनी है, जो विदेशी विश्वविद्यालयों को छात्रों की भर्ती/सलाहकार सेवाएँ SaaS प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से उपलब्ध कराती है।
- कंपनी का कहना था कि विदेशी विश्वविद्यालयों को दी गई सेवाएँ “निर्यात सेवा” (Export of Services) की श्रेणी में आती हैं, जिस पर GST लागू नहीं होता।
- कंपनी ने छात्रों से प्राप्त राशि पर GST अदा किया, परंतु विश्वविद्यालयों को दी गई सेवाओं पर कोई देयता नहीं मानी।
- विभाग का तर्क था कि याचिकाकर्ता वास्तव में एक इंटरमीडियरी (मध्यस्थ) है, इसलिए सेवाओं की आपूर्ति का स्थान भारत में माना जाएगा। विभाग ने यह भी कहा कि जांच प्राधिकरण के निष्कर्ष केवल prima facie (प्राथमिक दृष्टि) हैं और वास्तविक निर्णय केवल निर्णयन प्राधिकरण करेगा।
मुख्य मुद्दे:
- क्या याचिकाकर्ता की सेवाएँ Export of Services मानी जाएँगी या Intermediary Services?
- क्या जांच प्राधिकरण द्वारा दिए गए निष्कर्ष निर्णयन प्राधिकरण को बाध्य करते हैं?
निर्णय:
- उच्च न्यायालय ने कहा कि सेवाओं का वर्गीकरण (Export बनाम Intermediary) तथा Place of Supply के मुद्दे तथ्य और कानून दोनों पर आधारित प्रश्न हैं, जिन पर स्वतंत्र रूप से निर्णयन प्राधिकरण ही फैसला करेगा।
- वैध कारणों के बिना Show Cause Notice के खिलाफ रिट याचिका स्वीकार्य नहीं है।
- जांच प्राधिकरण की टिप्पणियाँ केवल प्रारंभिक होती हैं और Section 74(9) CGST Act के अंतर्गत निर्णयन प्राधिकरण उनसे बाध्य नहीं है।
- इसलिए न्यायालय ने याचिका खारिज कर दी और निर्देश दिया कि निर्णयन की प्रक्रिया निष्पक्ष एवं स्वतंत्र रूप से पूरी की जाए।
हमारी टिप्पणी:
सुप्रीम कोर्ट ने Siemens Limited बनाम महाराष्ट्र राज्य (2006) के मामले में रिट याचिका स्वीकार की थी क्योंकि वहाँ Show Cause Notice पूर्वाग्रहपूर्ण और अधिकार क्षेत्र से बाहर था।
परंतु इस मामले में, याचिकाकर्ता ने केवल जांच और Show Cause के स्तर पर ही चुनौती दी, बिना यह सिद्ध किए कि विभाग का अधिकार क्षेत्र नहीं था या मामला पूर्वनियोजित था। इसलिए न्यायालय ने हस्तक्षेप नहीं किया और कहा कि याचिकाकर्ता को GST कानून के तहत ही उचित मंच पर अपील करनी चाहिए।
प्रासंगिक प्रावधान:
केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम, 2017 (CGST Act, 2017) की धारा 74(9):
74. कर का निर्धारण (वित्तीय वर्ष 2023-24 तक की अवधि से संबंधित) – ऐसा कर जो भुगतान नहीं किया गया है, कम भुगतान किया गया है, या त्रुटिपूर्ण रूप से रिफंड किया गया है, अथवा जिस पर इनपुट टैक्स क्रेडिट धोखाधड़ी, किसी जानबूझकर की गई गलत घोषणा या तथ्यों के दमन के कारण गलत तरीके से लिया गया है या उपयोग किया गया है।
“(9) सक्षम अधिकारी, कर योग्य व्यक्ति द्वारा प्रस्तुत किए गए किसी भी प्रतिवेदन पर विचार करने के बाद, उस व्यक्ति से देय कर, ब्याज और दंड की राशि का निर्धारण करेगा और इस संबंध में आदेश पारित करेगा।“
CLICK HERE FOR OFFICIAL JUDGMENT COPY
(Author can be reached at info@a2ztaxcorp.com)
DISCLAIMER: The views expressed are strictly of the author and A2Z Taxcorp LLP. The contents of this article are solely for informational purpose and for the reader’s personal non-commercial use. It does not constitute professional advice or recommendation of firm. Neither the author nor firm and its affiliates accepts any liabilities for any loss or damage of any kind arising out of any information in this article nor for any actions taken in reliance thereon. Further, no portion of our article or newsletter should be used for any purpose(s) unless authorized in writing and we reserve a legal right for any infringement on usage of our article or newsletter without prior permission.