माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने केसरी नंदन मोबाइल बनाम ऑफिस ऑफ असिस्टेंट कमिश्नर ऑफ स्टेट टैक्स (2), एन्फोर्समेंट डिवीजन – 5 [सिविल अपील संख्या 9543, दिनांक 14 अगस्त 2025] के मामले में यह निर्णय दिया कि सीजीएसटी अधिनियम, 2017 की धारा 83 के अंतर्गत की गई प्रोविजनल अटैचमेंट, एक वर्ष पूर्ण होने पर विधि द्वारा स्वतः समाप्त हो जाती है और बिना स्पष्ट वैधानिक प्रावधान के समान आधार पर उसका नवीनीकरण या पुनः जारी करना वैध नहीं है।
तथ्य:
- केसरी नंदन मोबाइल (“याचिकाकर्ता”) एक पंजीकृत जीएसटी करदाता है, जिसकी बैंक खातों को राजस्व की सुरक्षा हेतु उत्तरदाता द्वारा धारा 83(1) सीजीएसटी अधिनियम, 2017 (“सीजीएसटी अधिनियम”) के अंतर्गत अस्थायी रूप से अटैच किया गया।
- यह अटैचमेंट आदेश एक वर्ष के लिए मान्य था, जो धारा 83(2) के अनुसार स्वतः समाप्त हो जाता है।
- आदेश की अवधि समाप्त होने के बाद, असिस्टेंट कमिश्नर ऑफ स्टेट टैक्स (2), एन्फोर्समेंट डिवीजन – 5 (“उत्तरदाता”) ने पूर्व आदेश के समान आधार पर दूसरा प्रोविजनल अटैचमेंट आदेश जारी कर दिया।
- याचिकाकर्ता ने नियम 159(5) के तहत आपत्ति प्रस्तुत की थी, जिन्हें निर्णयित किए बिना दूसरा आदेश पारित कर दिया गया।
याचिकाकर्ता का तर्क था कि दूसरा अटैचमेंट अल्ट्रा वायर्स है, वैधानिक आधारहीन है और उचित प्रक्रिया का उल्लंघन करता है।
उत्तरदाता ने तर्क दिया कि कार्यकारी निर्देश और नियम 159 के तहत प्रक्रिया दूसरे अटैचमेंट को उचित ठहराती है।
मुद्दा:
क्या उत्तरदाता, धारा 83(2) सीजीएसटी अधिनियम के तहत एक वर्ष की अवधि समाप्त होने के बाद, वही आधार लेकर दूसरा प्रोविजनल अटैचमेंट आदेश जारी कर सकता है? और क्या नियम 159(5) के अंतर्गत प्रस्तुत आपत्तियों का निस्तारण किए बिना पुनः जारी करना वैध है?
निर्णय:
माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने सिविल अपील संख्या 9543/2025 में निम्नलिखित अवलोकन किया:
- धारा 83(2) स्पष्ट करता है कि प्रोविजनल अटैचमेंट एक वर्ष पूर्ण होने पर स्वतः समाप्त हो जाता है; किसी भी प्रकार का विस्तार, नवीनीकरण या पुनः जारी करने का वैधानिक प्रावधान उपलब्ध नहीं है।
- धारा 83(1) का स्वरूप सख्त वैधानिक अनुपालन की मांग करता है; पुनः जारी करने की अनुमति देना धारा 83(2) को निरर्थक बना देगा।
- कार्यकारी आदेश या निर्देश वैधानिक प्रावधानों से ऊपर नहीं हो सकते; और ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो नवीनीकरण की अनुमति देता हो।
- पहले से समाप्त आदेश के समान आधार पर नया आदेश पारित करना धारा 83(2) का परोक्ष उल्लंघन है और शक्ति का दुरुपयोग है।
- नियम 159(5) के तहत आपत्ति का निस्तारण किए बिना दूसरा आदेश पारित करना प्रक्रिया और न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है।
- अन्य अधिनियमों (जैसे एक्साइज अधिनियम की धारा 11DDA, कस्टम्स अधिनियम की धारा 28BA) से तुलना करने पर स्पष्ट है कि सीजीएसटी अधिनियम, 2017 में जानबूझकर नवीनीकरण का प्रावधान नहीं रखा गया है।
- जब तक नियम 159 को धारा 83(2) के अनुरूप संशोधित नहीं किया जाता, प्राधिकरणों को एक वर्ष की सीमा का सख्ती से पालन करना होगा।
निष्कर्ष: उत्तरदाता किसी भी परिस्थिति में दूसरा या नवीनीकृत प्रोविजनल अटैचमेंट आदेश पारित नहीं कर सकता। समान आधार पर या आपत्तियों का निस्तारण किए बिना जारी किया गया आदेश अल्ट्रा वायर्स है और निरस्त करने योग्य है।
हमारी टिप्पणियाँ:
यह निर्णय राधा कृष्ण इंडस्ट्रीज़ बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य [AIR 2021 SC 2114] में स्थापित सिद्धांत को और स्पष्ट करता है कि प्रोविजनल अटैचमेंट की संतुष्टि का गठन सख्ती से वैधानिक शर्तों के अनुरूप होना चाहिए और उसका सीधा संबंध राजस्व की सुरक्षा से होना चाहिए।
सर्वोच्च न्यायालय ने गुजरात उच्च न्यायालय के श्रीमती प्रीति बनाम गुजरात राज्य [2011 SCC OnLine Guj 1869] के दृष्टिकोण से भिन्न रुख अपनाया है, जिसमें बिना वैधानिक प्रावधान के पुनः जारी करने की अनुमति दी गई थी।
यह निर्णय स्पष्ट करता है कि धारा 83(2) के एक वर्ष की सीमा से बचने का कोई भी प्रयास अस्वीकार्य है और कार्यकारी सुविधा या प्रक्रिया, विधायी आशय को नहीं बदल सकती।
प्रासंगिक प्रावधान:
धारा 83, सीजीएसटी अधिनियम, 2017
“83. कुछ मामलों में राजस्व की सुरक्षा हेतु अस्थायी अटैचमेंट
(1) जहाँ अध्याय XII, अध्याय XIV अथवा अध्याय XV के अंतर्गत किसी कार्यवाही के आरंभ होने के बाद आयुक्त इस मत पर पहुँचता है कि सरकार के राजस्व के हितों की रक्षा हेतु ऐसा करना आवश्यक है, तो वह लिखित आदेश द्वारा किसी कर योग्य व्यक्ति अथवा धारा 122 की उपधारा (1A) में निर्दिष्ट किसी भी व्यक्ति की कोई भी संपत्ति, जिसमें बैंक खाता भी सम्मिलित है, को इस प्रकार अस्थायी रूप से अटैच कर सकता है, जैसा कि नियमों में विनिर्दिष्ट किया गया हो।
(2) इस प्रकार किया गया प्रत्येक अस्थायी अटैचमेंट, उपधारा (1) के अंतर्गत आदेश पारित किए जाने की तिथि से एक वर्ष की अवधि पूर्ण होने के पश्चात प्रभावहीन हो जाएगा।”
नियम 159, सीजीएसटी नियम, 2017
“159. संपत्ति का अस्थायी अटैचमेंट”
(1) जहाँ आयुक्त धारा 83 के प्रावधानों के अनुसार किसी संपत्ति, जिसमें बैंक खाता भी सम्मिलित है, को अटैच करने का निर्णय लेता है, वह उस प्रभाव का आदेश फॉर्म जीएसटी DRC-22 में पारित करेगा, जिसमें अटैच की गई संपत्ति का विवरण अंकित होगा।
(2) आयुक्त फॉर्म जीएसटी DRC-22 में अटैचमेंट आदेश की प्रति संबंधित राजस्व प्राधिकरण, परिवहन प्राधिकरण अथवा किसी अन्य प्राधिकरण को भेजेगा ताकि उक्त चल अथवा अचल संपत्ति पर बोझ (encumbrance) डाला जा सके, जिसे केवल आयुक्त के लिखित निर्देशों पर ही हटाया जाएगा।
(3) जहाँ अटैच की गई संपत्ति नाशवान अथवा खतरनाक प्रकृति की है और जिस व्यक्ति की संपत्ति अटैच की गई है वह उस संपत्ति के बाज़ार मूल्य के बराबर अथवा उस पर देय या देय हो सकने वाली राशि, जो भी कम हो, का भुगतान करता है, तो ऐसे भुगतान के प्रमाण पर उक्त संपत्ति को फॉर्म जीएसटी DRC-23 में आदेश पारित कर तत्काल मुक्त कर दिया जाएगा।
(4) यदि उक्त व्यक्ति उप–नियम (3) में संदर्भित राशि का भुगतान करने में विफल रहता है, तो आयुक्त ऐसी संपत्ति का निपटान कर सकता है और उससे प्राप्त राशि को उस व्यक्ति के कर, ब्याज, दंड, शुल्क या अन्य किसी भी देय राशि के विरुद्ध समायोजित करेगा।”
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